व्यक्ति को कर्म के अनुसार ही फल मिलता है. बुरे कर्मों का बुरा परिणाम और अच्छे कर्मों का परिणाम अच्छा होता है. कहते हैं बुरे कर्मों का फल किसी ना किसी जन्म में अवश्य भोगना पड़ता है. इसलिए व्यक्ति को हमेशा सद्कर्म करते रहना चाहिए.
द्वापर युग में भीष्म पितामह को भगवान का परम भक्त, तेजस्वी और महापराक्रमी माना जाता था. उन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन किया और हमेशा अच्छे कार्य किए, लेकिन जीवन के अंतिम पड़ाव में उन्हें बहुत कष्ट झेलना पड़ा. महाभारत के युद्ध में उन्हें बाणों की शैय्या मिली, तो युद्ध समाप्ति के बाद भीष्म ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा कि मेरी इस हालत की असल वजह क्या है, जबकि मैंने जीवनभर कोई गलत कार्य नहीं किया. इसपर श्रीकृष्ण बोले कई जन्म पूर्व आपसे एक गलती हुई थी, आपने एक घायल पक्षी को कांटों वाली झाड़ियों में फेंक दिया था. वो पक्षी करीब 18 दिन तक उन झाड़ियों में तड़पता रहा और फिर उसकी मौत हुई. यही वजह है कि आपको भी वैसा ही दर्द झेलना पड़ा. कहा जाता है कि बाणों की शैय्या मिलने के कई दिन बाद जब सूर्य देव उत्तरायण हुए, तब भीष्म पितामह ने अपना शरीर त्यागा था.