ज्योतिष में सभी नौ ग्रह अपने से सातवें भाव पर पूर्ण दृष्टि रखते हैं, लेकिन अकेला शनि ही ऐसा है जो सातवीं दृष्टि के अलावा तीसरी और दसवीं दृष्टि भी रखता है. इसलिए कहा जाता है कि शनि की तीसरी दृष्टि जिस भाव पर पड़ती है उस घर से संबंधित समस्याएं पैदा होती हैं.
लग्न में स्थित शनि के कारण व्यक्ति राजा की तरह जीवन जीता है. द्वितीय भाव का शनि धनी बनाता है. तीसरे भाव का शनि जीवन में संघर्ष की स्थिति पैदा करता है. चौथे भाव में शनि से व्यक्ति को माता का सुख नहीं प्राप्त होता. पंचम भाव में स्थित शनि बुद्धि को भ्रमित करता है. छठे भाव के शनि के कारण व्यक्ति शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने वाला होता है. सातवें भाव में शनि होने पर अगर व्यक्ति पत्नी से मधुर संबंध रखता है तो वह सुखी रहेगा. अष्टम भाव का शनि दीर्घायु बनाता है. नवम भाव का शनि व्यक्ति को हर तरह से सुख प्रदान करता है. दशम भाव का शनि व्यक्ति को जीवन में उच्च लाभ देता है. एकादश भाव में शनि व्यक्ति को चापलूस बनाता है. द्वादश भाव में शनि उसके कर्म के अनुसार शुभ और अशुभ परिणाम देता है.