महर्षि भृगु और हिरण्यकश्यपु की पुत्री दिव्या की संतान शुक्राचार्य असुरों के गुरू थे. देवताओं के गुरू बृहस्पति और राक्षसों के गुरू शुक्राचार्य दोनों ने बचपन में एक साथ शिक्षा ग्रहण की, लेकिन अपनी कठिन साधना के बल पर शुक्राचार्य ने बृहस्पति की तुलना में एक अतिरिक्त विद्या को पाया.
पौराणिक कथा के अनुसार शुक्राचार बचपन से ही काफी मेधावी थे. उन्होंने अपनी शुरुआती शिक्षा अंगीरस ऋषि के आश्रम में ग्रहण की. अंगीरस ऋषि के पुत्र बृहस्पति और शुक्राचार्य दोनों सहपाठी थे, लेकिन बुद्धि के मामले में शुक्राचार्य,, बृहस्पति से ज्यादा कुशाग्र थे. पुत्र मोह के कारण अंगीरस ऋषि ने जब बृहस्पति को ज्यादा अच्छी शिक्षा देना शुरू किया, तो शुक्राचार्य उनके आश्रम से निराश होकर गौतम ऋषि के पास गए. गौतम ऋषि से शिक्षा पाकर जब शुक्राचार्य को ये पता चला कि बृहस्पति को देवताओं का गुरू बनाया गया है तो उन्होंने भी असुरों का गुरू बनना स्वीकार कर लिया. उन्होंने अपनी कठोर साधना के बल पर भगवान शंकर से अनोखी मृत संजीवनी विद्या भी पाई.