भगवान विष्णु के अवतार प्रभु श्रीकृष्ण ने द्वापर युग में जन्म लेकर बहुत बड़े-बड़े कार्य किए. जहां एक ओर पांडवों की जीत सुनिश्चित करने के लिए श्रीकृष्ण ने भीम के पौत्र बर्बरीक से उनका शीश मांगा तो वहीं दूसरी ओर बदले में उन्होंने बर्बरीक को खाटू श्याम के नाम से पूजे जाने का वरदान दे दिया.
कलयुग में खाटू श्याम को बाबा श्याम, खाटू का नरेश, हारे का सहारा, शीश का दानी, लखदातार और मोर्विनंदन इन सभी नामों से पुकारा जाता है. ऐसी मान्यता है कि खाटू श्याम बाबा सभी की मनोकामनाएं पूरी करते हैं और व्यक्ति को फर्श से अर्श तक पहुंचा सकते हैं. खाटू श्याम का संबंध महाभारत काल से माना जाता है. भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक को उनकी वीरता और दिव्य शक्तियों के कारण पहचाना जाता था. बर्बरीक ने महाभारत युद्ध में हारने वाले पक्ष की ओर से लड़ने का प्रण किया था. यही कारण है कि भगवान श्रीकृष्ण को उनसे उनका शीश मांगना पड़ा. बर्बरीक के कटे शीश ने पूरी महाभारत देखी और जीत का श्रेय भगवान श्रीकृष्ण को दिया. प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण ने उन्हें अपने नाम से पूजे जाने का वरदान दे दिया.