हिंदू धर्म में पितर पक्ष का विशेष महत्व है. पितर पक्ष के दौरान लोग अपने पूर्वजों को याद करते हैं और उनकी आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध कर्म और तर्पण करते हैं, ताकि उनके परिवार पर पितरों का आशीर्वाद हमेशा-हमेशा के लिए बना रहे.
गरुड़ पुराण के अनुसार, जब किसी की मृत्यु होती है तो मृत आत्मा 13 दिनों तक अपने परिवार के बीच ही रहती है. इस दौरान घर में गरुड़ पुराण का पाठ किया जाता है ताकि मृत आत्मा को शांति और मोक्ष मिल सके. कर्मों के भुगतान के बाद आत्मा एक नए शरीर में प्रवेश करती है. जीवन-मृत्यु की ये प्रक्रिया तब तक चलती रहती है, जब तक उस आत्मा को मोक्ष नहीं मिल जाता. इसलिए कहा जाता है कि व्यक्ति की मौत के बाद उसका पिंडदान करना जरूरी होता है. पिंडदान से आत्मा तृप्त होती है. ऐसा ना करने पर आत्मा भटकती रहती है. हिंदू धर्म में पूर्वजों को याद करने के लिए अश्विन मास के ये 15 दिन बहुत खास होते हैं. इसलिए व्यक्ति को चाहिए कि वो इन 15 दिनों में अपने पितरों का श्राद्ध कर्म और तर्पण करें, बदले में पितर संतुष्ट होकर उन्हें आशीर्वाद देंगे.