कहते हैं भगवान भोलेनाथ अपने भक्तों से बहुत जल्दी प्रसन्न होते हैं और उनको झट से वरदान दे देते हैं. असुरों के गुरू शुक्राचार्य ने भी ऐसा ही किया. उन्होंने शिव जी की कठोर साधना की और मृत संजीवनी विद्या ग्रहण करने के बाद भगवान विष्णु से अपनी माता की मृत्यु का बदला लेने की ठान ली. गुरू शुक्राचार्य और सभी असुर तभी से भगवान विष्णु के परम शत्रु बन गए.
जहां एक ओर शुक्राचार्य इस विद्या के जरिए मृत असुरों को जिंदाकर उनकी संख्या बढ़ाने लगे और असुरों का राज्य दोबारा से स्थापित करने में लग गए. वहीं दूसरी ओर शुक्राचार्य के पिता यानि महर्षि भृगु को जब अपनी पत्नी की मृत्यु के बारे में पता चला तो उन्होंने क्रोधवश विष्णु जी को पृथ्वी पर बार-बार मां के गर्भ में जन्म लेकर कष्ट भोगने का श्राप दे दिया. दरअसल इस श्राप से पहले भगवान विष्णु ने वराह, मत्स्य, कुरमा और नरसिंह के रूप में अवतार लिया था, लेकिन श्राप के बाद प्रभु श्रीहरि ने परशुराम, श्रीराम और श्रीकृष्ण के रूप में मां के गर्भ में रहकर पीड़ा झेली और उसके बाद धरती पर जन्म लिया.