मां काली,, देवी दुर्गा का एक स्वरूप हैं. कई मूर्तियों और तस्वीरों में मां काली का चरण देवों के देव महादेव के सीने पर होता है और माता की जीभ बाहर की तरफ निकली होती है. ऐसा कहा जाता है कि दुष्टों और असुरों का संहार करने के लिए ही माता ने ये विकराल रूप धारण किया था.
पौराणिक कथा के अनुसार रक्तबीज नाम के एक असुर को ये वरदान था कि जब कभी उसका वध करने का प्रयास होगा, तब उसके खून की जितनी भी बूंद जमीन पर गिरेगी, उससे उतने ही रक्तबीज और पैदा हो जाएंगे. इस कारण उसकी मृत्यु बिल्कुल असंभव थी. आतंक बढ़ने पर जब देवताओं ने मां काली की शरण ली, तब माता ने युद्ध के दौरान खप्पर से रक्तबीज के खून को रोका और रक्तबीज का वध किया, लेकिन इसके बाद भी माता का क्रोध शांत नहीं हुआ. तब देवताओं के अनुरोध पर भगवान शिव मां काली को गुस्से में आता देख उनके सामने लेट गए. माता ने जैसे ही देखा कि वो महादेव पर कदम रखने जा रही हैं, तभी उन्हें अपनी भूल का एहसास हुआ और उनकी जीभ बाहर आ गई. इसके बाद जाकर मां काली का क्रोध शांत हुआ.