माता वैष्णो देवी की यात्रा के बारे में कहा जाता है कि माता के दर्शन के बाद भैरोनाथ के दर्शन करने पर ही यात्रा पूरी मानी जाती है. कहते हैं भैरोनाथ के क्षमा याचना के कारण माता ने उसके मोक्ष प्राप्ति के उद्देश्य को जानकर क्षमा कर दिया था.
पौराणिक कथा के अनुसार श्रीधर नाम का एक व्यक्ति माता का परम भक्त था. एक बार श्रीधर ने नवरात्रि पूजन के दौरान कुंवारी कन्याओं को बुलाया. इन्हीं कन्याओं में एक माता वैष्णो भी थीं. पूजन के बाद माता ने श्रीधर से सभी ग्रामीणों को भोजन कराने के लिए न्यौता देने को कहा. श्रीधर ने कन्या रूपी माता वैष्णो की बात मानकर ग्रामीणों को निमंत्रण दिया. जब सभी अतिथियों को श्रीधर ने माता के एक विशेष पात्र से भोजन परोसना चालू किया, तब उन्ही अतिथियों में से एक भैरोनाथ ने मांस और मदिरा की इच्छा जताई. नाराज़ होकर माता वहां से त्रिकूट पर्वत पर एक गुफा में चली गईं. यहां माता ने 9 महीने का समय बिताया. फिर वहां से निकलकर जिस स्थान पर माता ने भैरोनाथ का वध किया, उसे माता का भवन कहते हैं. यहां से 3 किलोमीटर ऊपर भैरोनाथ का कटा सिर गिरा, वहीं भैरोनाथ मंदिर है .