ज्योतिष में ग्रहों की महादशा,, व्यक्ति के जीवन में आने वाली छोटी-बड़ी और शुभ-अशुभ हर तरह की घटनाओं को दर्शाती है. महादशा एक ऐसा निश्चित समय अंतराल है, जिसमें कोई ग्रह अपनी प्रबल स्थिति में होता है. कुंडली में जिस ग्रह की स्थिति मजबूत होती है वो अपनी महादशा में शुभ फल और जिसकी स्थिति कमजोर होती है वो अपनी महादशा आने पर अशुभ फल देता है.
किसी ग्रह की महादशा के दौरान बाकी अन्य ग्रह भी अपनी निश्चित चाल से चलते रहते हैं. यूं कहें तो किसी ग्रह की महादशा के समय अंतराल में सभी नौ ग्रहों का भ्रमण भी निश्चित समय के लिए बारी-बारी से होता रहता है, इसे अंतर्दशा कहते हैं. जिस ग्रह की महादशा शुरू होती है, सबसे पहले उसी की अंतर्दशा भी चालू होती है. इन्हीं अंतर्दशाओं की प्रत्यंतर दशाएं भी होती हैं, जो कुंडली में मौजूद ग्रहों का बड़ी ही बारीकी से आंकलन करती हैं. किसी कुंडली में सबसे लंबी महादशा शुक्र की 20 साल, शनि की 19 साल, राहु की 18 साल, बुध की 17 साल, गुरू की 16 साल, चंद्रमा की 10 साल, मंगल और केतु की 7-7 साल एवं सूर्य की 6 साल होती है.