देवउठनी एकादशी को भगवान विष्णु के स्वरूप शालिग्राम और तुलसी के विवाह की प्रथा है. भगवान नारायण के शिला स्वरूप को ही शालिग्राम कहा जाता है. मान्यता है कि भगवान शालिग्राम और तुलसी का विवाह कराने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है.
पौराणिक कथा के अनुसार, तुलसी का पूर्व जन्म में नाम वृंदा था और वो विष्णु भक्त थी. एक श्राप के चलते उसका विवाह शंखचूड़ नाम के राक्षस से हुआ. एक बार देवताओं और राक्षसों के बीच हुए युद्ध में शंखचूड़ की जीत के लिए वृंदा ने अनुष्ठान किया. सभी देवताओं ने विष्णु जी से सहायता मांगी. वृंदा का अनुष्ठान तोड़े बिना उसके पति शंखचूड़ को हराना मुश्किल था, ये जानकर विष्णु जी शंखचूड़ का वेश धारण कर वृंदा के पास गए. ये देखकर जैसे ही वृंदा ने अनुष्ठान तोड़ा, वैसे ही देवताओं ने युद्ध में असली शंखचूड़ को मार गिराया. सही बात पता चलने पर वृंदा ने विष्णु जी को पत्थर के रूप में हो जाने का श्राप दे दिया. ऐसा कहा जाता है कि जिस जगह वृंदा अपने पति का सिर लेकर सती हुई, वहां एक पौधा निकला, जिसे तुलसी कहा गया. कहते हैं बगैर तुलसी के विष्णु जी की पूजा पूरी नहीं होती.