एक बार धरती के कल्याण के लिए सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी ने यज्ञ करना चाहा, जिसमें हवन के लिए उन्हें पत्नी के साथ बैठना जरूरी था. किसी कारणवश उनकी पत्नी सावित्री को देर हो गई. यज्ञ का शुभ मुहूर्त निकलने पर कोई उपाय न देखकर ब्रह्मा जी ने नंदिनी गाय के मुख से गायत्री को प्रकट कर उनके साथ अपना यज्ञ पूरा किया.
जब सावित्री यज्ञ स्थल पर पहुंचीं, तो ब्रह्मा जी के बगल में किसी अन्य स्त्री को बैठे देख वो क्रोधित हो गईं. गुस्से में उन्होंने ब्रह्मा जी को श्राप दिया कि इस पृथ्वी पर कहीं भी उनकी पूजा नहीं होगी. बाद में जब उनका गुस्सा शांत हुआ और देवताओं ने उनसे श्राप वापस लेने की विनती की, तो उन्होंने कहा कि धरती पर सिर्फ पुष्कर में ही ब्रह्मा जी की पूजा होगी. क्रोध शांत होने के बाद सावित्री माता पुष्कर के पास मौजूद पहाड़ियों पर जाकर तपस्या में लीन हो गईं. इसलिए पुष्कर में सावित्री माता की पूजा की भी काफी मान्यता है.