चैत्र नवरात्रि के छठे दिन मां दुर्गा के कात्यायनी स्वरूप की पूजा होती है. ऋषि कात्यायन की पुत्री होने के कारण इनका नाम मां कात्यायनी है. मां कात्यायनी की पूजा से विवाह संबंधी सभी परेशानियां दूर होती हैं और व्यक्ति को सौभाग्य की प्राप्ति होती है.
पौराणिक कथा के अनुसार, जिस समय महिषासुर नाम के राक्षस के अत्याचार से पूरी पृथ्वी पर हाहाकार मचा हुआ था, उस समय त्रिदेव यानि भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने अपने-अपने तेज से एक देवी को प्रकट किया. इन देवी की पूजा सबसे पहले ऋषि कात्यायन ने की, इस कारण देवी इनकी पुत्री बनकर मां कात्यायनी कहलाईं. महिषासुर का वध करने के कारण मां कात्यायनी को महिषासुरमर्दिनी भी कहा जाता है. ज्योतिष की बात करें तो मां कात्यायनी का संबंध बृहस्पति ग्रह से माना गया है. ऐसे में मां कात्यायनी की आराधना के दौरान पीले रंग की वस्तुओं का ज्यादा प्रयोग करना चाहिए. माता को शहद का भोग काफी प्रिय है. मां कात्यायनी के एक हाथ में तलवार, दूसरे हाथ में कमल, तीसरा हाथ वर मुद्रा में और चौथा हाथ अभय मुद्रा में होता है.