भगवान विष्णु को समर्पित एकादशी व्रत का विशेष महत्व है. साल की 24 एकादशी तिथियों में से ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को श्रेष्ठ और पुण्य फल देने वाली माना जाता है. इसे निर्जला एकादशी या भीमसेनी एकादशी कहते हैं. इस बार 31 मई को निर्जला एकादशी है.
निर्जला एकादशी व्रत रखते हुए भगवान श्रीहरि की आराधना करने से व्यक्ति सभी पापों से मुक्त होकर वैकुण्ठ को प्राप्त होता है. पौराणिक कथा के अनुसार जब नारद जी ने अपने पिता यानि ब्रह्मा जी से भगवान विष्णु के चरणकमलों में स्थान पाने का उपाय पूछा, तो ब्रह्मा जी ने उन्हें निर्जला एकादशी व्रत रखने का सुझाव दिया. नारद जी ने एक हजार वर्षों तक निर्जल रहकर इस कठोर व्रत का पालन किया,, तब भगवान विष्णु ने प्रकट होकर उन्हें अपने श्रेष्ठ भक्तों में स्थान दे दिया. वहीं एक अन्य कथा के अनुसार द्वापर युग में महर्षि व्यास ने जब पांडवों को एकादशी व्रत रखने का संकल्प कराया,, तो महाबलशाली भीम ने अपनी भूख के कारण एकादशी व्रत रखने में असमर्थता जताई. इस पर महर्षि व्यास ने उन्हें सभी एकादशियों में से निर्जला एकादशी व्रत रहने की सलाह दी. यही कारण है कि इसे भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं.