महाभारत के युद्ध के दौरान कौरवों की सेना में दुर्योधन, भीष्म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य और कर्ण जैसे एक से एक महायोद्धा थे, लेकिन जीत पांडवों की हुई क्योंकि उनका साथ देने के लिए खुद नारायण के अवतार में भगवान श्रीकृष्ण उनके साथ मौजूद रहे.
महाभारत युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन के रथ का सारथी बनना स्वीकार किया था, इस कारण उन्होंने युद्ध शुरू होने से पहले अर्जुन को संकटमोचन हनुमान का आह्वान करने को बोला. कहते हैं भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर ही हनुमान जी ने पूरे महाभारत युद्ध के दौरान अर्जुन के रथ की ध्वजा पर विराजमान होकर दिव्यास्त्रों के प्रहार से उस रथ की रक्षा की. यही कारण है कि जबतक युद्ध चला तबतक वो पूरी तरह सुरक्षित रहा. युद्ध समाप्त होने के बाद जैसे ही भगवान श्रीकृष्ण उतरे, उनके रथ से उतरते ही हनुमान जी रथ की ध्वजा से अंतर्ध्यान हो गए और शेषनाग, जिन्होंने रथ के पहिए को कसकर जकड़ रखा था वे भी पाताल लोक चले गए. इसके बाद पूरा रथ जलकर भस्म हो गया.