हनुमान जी को अजरता और अमरता का वरदान है, इस कारण द्वापर युग में भी समय-समय पर प्रकट होकर उन्होंने भगवान नारायण का कार्य सिद्ध किया.
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार हनुमान जी ने अर्जुन का अहंकार दूर करने की ठानी. रामेश्वरम के पास जब हनुमान जी की अर्जुन से मुलाकात हुई तो अर्जुन ने हनुमान जी से पूछा कि राम-रावण युद्ध में पत्थरों के सेतु के बजाए बाणों का सेतु क्यों नहीं बनाया गया. इसपर हनुमान जी ने कहा कि बाणों का सेतु वानरों का भार सहन नहीं कर पाता. तब अहंकारवश अर्जुन ने हनुमान जी से कहा कि अगर वो उनके बनाए बाणों के सेतु पर चलकर दिखाएं और सेतु टूट जाए तो वो अग्नि समाधि ले लेंगे. इस बात पर हनुमान जी ने हामी भर दी. अर्जुन के बनाए सेतु पर जब हनुमान जी चले तो सेतु टूट गया. शर्त के अनुसार अर्जुन अग्नि समाधि लेने चले, तभी श्रीकृष्ण ने उन्हें रोक दिया और कहा कि ये सब उनकी लीला थी. तब अर्जुन ने हनुमान जी से माफी मांगी. इसके बाद हनुमान जी ने महाभारत युद्ध में अर्जुन के रथ की ध्वजा पर बैठने की बात कही.