पुराणों में शिव के प्रमुख अवतारों में से एक हैं भैरव अवतार. भगवान शंकर के इसी अवतार को पूर्ण रूप माना गया है. सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी का 5वां सिर काटने की वजह से भैरव को ब्रह्म हत्या के पाप का दोष लगा और काशी में उन्हें इस पाप से मुक्ति मिली. यही कारण है कि काशीवासी भैरव की भक्ति जरूर करते हैं.
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान भोलेनाथ की माया के कारण ब्रह्मा जी और विष्णु जी में श्रेष्ठता को लेकर विचार होने लगा. इसी दौरान वहां तेजपुंज के बीच एक पुरुष की आकृति जैसी दिखाई पड़ी, जिसको देखकर ब्रह्मा जी ने उन्हें अपनी शरण में आने को कहा. ब्रह्मा जी के इन वाक्यों को सुनकर शिव जी क्रोधित हुए और उन्होंने पुरुषाकृति से कहा कि काल की भांति शोभित होने के कारण आप साक्षात कालराज हैं और भीषण होने के कारण भैरव हैं. भोलेनाथ से इन वरदानों को पाकर भैरव ने अपने नाखून से ब्रह्मा के 5वे सिर को काट दिया. इस कारण भैरव को ब्रह्महत्या का दोष लगा और काशी में उन्हें इस पाप से मुक्ति मिली.