शिव जी को आदिदेव के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि शिव ही आदि हैं और शिव ही अनंत. शिव ही भोलेनाथ हैं और शिव ही महाकाल हैं. सावन के महीने में हर तरफ बस बम बम भोले की ही गूंज सुनाई पड़ती है. कहते हैं श्रावण मास में ही शिव जी पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गए थे और वहां उनका स्वागत जलाभिषेक से हुआ था. यही कारण है कि सावन में रूद्राभिषेक का विशेष महत्व है.
देवों के देव महादेव ने ही सर्वप्रथम गुरू और शिष्य परंपरा की शुरुआत की थी. शिव के सात शिष्यों को ही सप्तऋषि माना गया है. इनमें बृहस्पति, शुक्र, विशालाक्ष, सहस्राक्ष, महेंद्र, प्राचेतस मनु और भारद्वाज मुनि के नाम आते हैं. इनके अलावा परशुराम और रावण भी भोलेनाथ के शिष्य थे. शिव के गणों की बात की जाए तो उसमें नंदी, श्रृंगी, भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण प्रमुख हैं. इन सबके अलावा दैत्य, पिशाच, नाग-नागिन और पशुओं को भी शिव का गण माना गया है. भगवान शिव की महिमा ऐसी है कि वे,, देवता, राक्षस, पिशाच, गंधर्व और यक्ष सभी के लिए पूजनीय हैं.