कुंडली में राहु और केतु ग्रहों का अपना कोई अस्तित्व नहीं होता है. ये जिस भी ग्रह के साथ बैठते हैं वैसा ही फल देने लगते हैं. जब देवताओं और असुरों ने अमृत पाने के लिए समुद्र मंथन किया,,तो सभी देवताओं ने भगवान विष्णु के सामने अमृत को राक्षसों से बचाने का मुद्दा रखा,,क्योंकि देवता चाहते थे कि समुद्र मंथन से उत्पन्न अमृत असुरों को न मिल सके.
जिस वक्त विष्णु जी,,मोहिनी का रूप धारण कर देवताओं को अमृत पिला रहे थे,,,उसी वक्त स्वरभानु छल से अमृत पीने के लिए देवताओं की पंक्ति में सूर्य और चंद्र देव के पास बैठ गया. इस दौरान सूर्य और चंद्र देव ने उसे पहचान लिया,,,जिसके बाद भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से स्वरभानु का सिर और धड़ अलग कर दिया,,,लेकिन तब तक अमृत की कुछ बूंदे उसके शरीर में चली गई थी,,,जिससे उसका सिर और धड़ को अमरत्व की प्राप्ति हुई. तभी से स्वरभानु के कटे सिर को राहु और धड़ को केतु कहा जाता है. बाद में ब्रह्मा जी ने राहु यानि स्वरभानु राक्षस के कटे सिर को एक सांप के धड़ से और केतु यानि स्वरभानु राक्षस के कटे धड़ को उसी सांप के सिर से जोड़ दिया.