ज्योतिष में शनि को एक तपकारक ग्रह माना गया है. तप करने से शरीर कठोर होता है, इसलिए शनि देव व्यक्ति को कठिन तप के बाद ही फल देते हैं. सूर्य के पुत्र शनि दुख दायक, शूद्र वर्ण, तामस प्रकृति, वात प्रकृति प्रधान और भाग्यहीन नीरस वस्तुओं पर अधिकार रखते हैं. सच्चे और झूठे का भेद समझना, शनि का विशेष गुण है.
यह ग्रह विपत्ति, कष्ट, निर्धनता देने के साथ-साथ बहुत बड़ा गुरू और शिक्षक भी है. शनि जब तक व्यक्ति को पीड़ित करता है, तब तक उसके जीवन में चारों तरफ तबाही मची रहती है. शनि का काम केवल पीड़ा देना ही नहीं है बल्कि अच्छे और शुभ कर्मों वाले व्यक्तियों की कुंडली में वो उच्च होकर उनके भाग्य को बढ़ाता है,, यानि जो भी व्यक्ति धन कमाता है, उसे सदुपयोग में लगाता है. शनि जिसका बढ़िया है उसे एक पल में टॉप पोजीशन पर लाकर खड़ा कर देता है और खराब तो राजा को भी रंक बना देता है. घमंड के कारण जो लोग अपनी ही बात को सबसे आगे रखते हैं,, शनि देव उनको ही पीड़ित करते हैं.