सतयुग, त्रेता और द्वापर युग में पक्षियों के रूप में गरुड़ को सबसे बुद्धिमान और तेज उड़ान भरने वाला माना जाता था. इनका काम संदेशों को इधर से उधर पहुंचाना होता था.
पौराणिक कथा के अनुसार, गरुड़ देव ने जन्म लेने के बाद अपनी माता विनता को दासत्व से मुक्ति दिलाने का वचन दिया. इसके लिए उन्हें देवताओं से अमृत कलश के लिए युद्ध करना पड़ा, क्योंकि गरुड़ की मां विनता ने अपनी बहन कद्रू से शर्त हारकर दासी बनना स्वीकार किया था. देवताओं से युद्ध में विजयश्री हासिल करके जब गरुड़ देव अमृत कलश लेकर जा रहे थे, तब रास्ते में भगवान विष्णु प्रकट हुए और उन्होंने गरुड़ देव को अमरता का वरदान दिया, साथ ही उन्हें अपना वाहन बनाना भी स्वीकार किया. गरुड़ देव को इंद्र ने भी नागपाश काटने का आशीर्वाद दिया. इसके बाद कद्रू के सर्प पुत्रों को अमृत कलश सौंपने के बाद गरुड़ ने उन्हें स्नान के बाद उसे पीने की सलाह दी. जैसे ही सर्प स्नान करने गए वैसे ही इंद्र अमृत कलश को लेकर वापस चले गए. इस तरह से गरुड़ ने माता को दासत्व से मुक्ति दिलाई और इंद्र को कलश वापसी का वादा भी पूरा किया.