पुराणों में शिव जी के अवतारों में दुर्वासा ऋषि का अवतार भी प्रमुख माना गया है. दुर्वासा ऋषि अपने क्रोधी स्वभाव के कारण जाने जाते हैं. ऐसा कहा जाता है कि दुर्वासा ऋषि जिसपर क्रोध करते थे, उसका कल्याण हो जाता था. स्वर्ग के राजा इंद्र को जब उन्होंने श्राप दिया, तो समुद्र मंथन करना पड़ा. वहीं त्रेता युग में लक्ष्मण जी की मृत्यु का कारण भी ऋषि दुर्वासा ही बने थे.
पौराणिक कथा के अनुसार, सती अनुसूइया के पति महर्षि अत्रि ने ब्रह्मा जी की आज्ञा पाकर त्रिकूट पर्वत पर पुत्रकामना से घोर तपस्या की थी. उनके तप से प्रसन्न होकर त्रिदेव यानि ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने उन्हें अपने अंश से तीन पुत्रों के जन्म का आशीर्वाद दिया. त्रिदेवों के वरदान से उनके यहां तीन यशस्वी पुत्रों ने जन्म लिया. ब्रह्मा जी के अंश से चंद्रमा, विष्णु जी के अंश से दत्तात्रेय और महादेव के अंश से दुर्वासा ऋषि उत्पन्न हुए. महर्षि अत्रि और सती अनुसूइया के ये तीनों ही पुत्र त्रिलोक में काफी विख्यात हुए.