सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम जी के बारे में कहा जाता है कि वे चिरंजीवी हैं और आज भी जीवित हैं. त्रेता युग में सीता स्वयंवर के समय जब प्रभु श्रीराम ने भगवान भोलेनाथ का धनुष तोड़ा, तब वे काफी क्रोधित हुए थे, लेकिन बाद में प्रभु श्रीराम के धैर्य से प्रभावित होकर उन्होंने अपने क्रोध को श्रीराम के चरणों में समर्पित कर दिया और अंतर्ध्यान हो गए.
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान परशुराम,, ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका के पुत्र थे. ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका ने पुत्र प्राप्ति के लिए एक यज्ञ किया, जिससे प्रसन्न होकर इंद्र देव ने उन्हें एक तेजस्वी पुत्र को पाने का आशीर्वाद दे दिया. अक्षय तृतीया के दिन जब भगवान परशुराम का जन्म हुआ तो उनके पिता ऋषि जमदग्नि ने उनका नाम ‘राम’ रखा. परशुराम जी ने भगवान शिव से शस्त्र विद्या सीखी. महादेव ने प्रसन्न होकर उन्हें अपना फरसा यानि परशु दे दिया,, जिसकारण वे बाद में ‘परशुराम’ कहलाए. भगवान परशुराम का जन्म वैसे तो त्रेता युग में हुआ था, लेकिन उनका वर्णन रामायण के साथ-साथ महाभारत में भी मिलता है.