हरछठ व्रत की महिमा

हरछठ व्रत की महिमा

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी से दो दिन पहले पड़ने वाले हलषष्ठी पर्व को हरछठ के नाम से भी जाना जाता है। भादो महीने की कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को ये पर्व मनाया जाता है। भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम जी के जन्म के कारण इस दिन को बलराम जयंती भी कहा जाता है। बलराम जी,, देवकी और वासुदेव की 7वीं संतान थे। बलराम जी का मुख्य शस्त्र हल होने की वजह से ये पर्व हलषष्ठी या हरछठ कहलाया। ऐसा कहा जाता है कि द्वापर युग में देवी उत्तरा ने श्री कृष्ण से सलाह लेकर अपने नष्ट गर्भ को ठीक करने के लिए हरछठ व्रत रखा था। उसी दिन से हरछठ का त्योहार बड़े ही विधि विधान से मनाया जाता है।

हरछठ के व्रत का पूर्वी उत्तर भारत में खासा महत्व है। ये व्रत पुत्रवती महिलाओं के लिए है। कठोर व्रत के पालन के साथ ही माताएं अपनी संतान के दीर्घायु और सुखी होने की मंगल कामना करती हैं। पुत्रवती महिलाओं के अलावा किसान वर्ग भी पूजा-अर्चना करते हैं। इस दिन हल, मूसल और बैल का पूजन होता है और उगाए गए अनाज और सब्जियों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। व्रत के दौरान खाने के लिए महिलाएं तिन्नी के चावल, नारी का साग और दही का इस्तेमाल करती हैं। इस दिन गाय का दूध और दही का प्रयोग वर्जित होता है।

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