मनुष्य अपने पूर्वजों का अंश होता है इसलिए कहा जाता है कि किसी ना किसी रूप में हम पितरों के ऋणी हैं. ऋण भी तीन तरह के होते हैं- देव ऋण, ऋषि ऋण, पितृ ऋण….
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