विघ्न विनाशक और देवों में अग्रगण्य अर्थात प्रथम पूज्य भगवान गणेश को बुद्धि और ज्ञान का स्वामी माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि देवों के देव महादेव और माता पार्वती के पुत्र भगवान गणपति भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को अवतरित हुए थे। यही कारण है कि इस दिन को गणेश उत्सव के रूप में मनाया जाता है। भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को भगवान गणेश के सिद्धि विनायक स्वरूप की पूजा होती है।
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इस दिन नहीं किया जाता चंद्र दर्शन
कहते हैं गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा को नहीं देखना चाहिए। इसके पीछे मान्यता ये है कि हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार, इस चतुर्थी की रात्रि को चंद्र दर्शन करने से झूठे आरोप लगते हैं। कहा जाता है कि एक बार भगवान श्रीकृष्ण ने भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को चंद्र दर्शन कर लिए थे, जिसके कारण उन पर भी स्यामंतक मणि चुराने का आरोप लगा था। इससे मुक्ति पाने के लिए श्रीकृष्ण ने विधिवत गणेश चतुर्थी का व्रत किया था।
भगवान गणेश ने इस कारण दिया था चंद्रमा को श्राप
पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान गणेश को गज का मुख लगा तो वे गजानन कहलाए और माता-पिता के रूप में पृथ्वी की सबसे पहले परिक्रमा करने के कारण अग्रपूज्य हुए। सभी देवताओं ने उनकी स्तुति की, लेकिन चंद्रमा उनको देखकर मुस्कुराते रहे। दरअसल चंद्रमा को अपने सौंदर्य पर अभिमान था। ये बात गणेश जी अच्छी तरह समझ गए और उन्होंने क्रोध में आकर चंद्रमा को काले हो जाने का श्राप दे दिया। इसके बाद चंद्रमा को अपनी भूल का अहसास हुआ और उन्होंने भगवान गणेश से क्षमा-प्रार्थना की। तब गणेश जी ने कहा कि सूर्य के प्रकाश को पाकर तुम एक दिन पूर्ण हो जाओगे यानि पूर्ण प्रकाशित होगे, लेकिन चतुर्थी का ये दिन तुम्हें दण्ड देने के लिए हमेशा याद किया जाएगा। इस दिन को याद कर कोई भी व्यक्ति अपने सौंदर्य पर अभिमान नहीं करेगा। जो व्यक्ति भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन तुम्हारे दर्शन करेगा, उस पर झूठा आरोप लगेगा। यही वजह है कि गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा के दर्शन ना करने की मान्यता है।