15 नवंबर यानि सोमवार को तुलसी-शालिग्राम विवाह है. इस दिन भगवान नारायण के स्वरूप शालिग्राम का विवाह तुलसी जी से कराने की प्रथा है. एकादशी तिथि के समाप्त होते ही 15 तारीख को सुबह 6 बजकर 39 मिनट पर द्वादशी तिथि लगने के साथ ही उदयातिथि को तुलसी विवाह मनाया जाएगा.
पौराणिक कथा के अनुसार जब भगवान विष्णु ने जलंधर का वध करके देवताओं को जलंधर के अत्याचार से मुक्ति दिलाई थी, तब जलंधर की पत्नी वृंदा ने विष्णु जी पर छल करने का आरोप लगाते हुए उन्हें पत्थर का बन जाने का श्राप दिया था. सभी देवताओं के प्रार्थना करने पर वृंदा ने खुद को अग्नि के हवाले कर नारायण को श्राप मुक्त कर दिया. तब भगवान विष्णु प्रायश्चित करने के उद्देश्य से पत्थर के रूप में शालिग्राम बनकर प्रकट हुए. भगवान नारायण ने ही वृंदा को राख से तुलसी के रूप में प्रकट होने का वरदान दिया. इसके बाद वृंदा की मर्यादा और पवित्रता को बनाए रखने के लिए देवताओं ने भगवान नारायण के शालिग्राम स्वरूप का विवाह तुलसी से कराया. ऐसा कहा जाता है कि इस दिन शालिग्राम और तुलसी का विवाह कराने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं.