भगवान शिव को भोलेनाथ इसलिए कहा जाता है क्योंकि वो अपने भक्तों से बहुत जल्द ही प्रसन्न हो जाते हैं। पूजा के दौरान वे सिर्फ जलाभिषेक से ही हर्षित हो जाते हैं। भगवान शंकर के दया की अनंत सीमा का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनके प्रभाव के कारण राक्षस राज रावण भी शिव जी का परम भक्त हो गया था।
एक बार रावण ने अहंकारवश पूरा कैलाश पर्वत उठा लिया और उसे लंका की ओर ले जाने लगा। तभी भगवान शंकर ने अपने पैर के अंगूठे से कैलाश पर्वत को दबा दिया, जिससे रावण उस पर्वत के नीचे दब गया। फिर उसने शिव जी की प्रशंसा में एक स्तुति गाई, जिसे शिव तांडव स्तोत्र के नाम से जाना जाता है। उसके संगीत को सुनकर भोलेनाथ इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने रावण को सुख, समृद्धि, ज्ञान, विज्ञान और अमरता का वरदान भी दे दिया। तभी से रावण द्वारा रचित शिव तांडव स्तोत्र का विशेष महत्व है। यह स्तुति पंचचामर छंद में है।