सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ देव हैं. पक्षियों में गरुड़ को सर्वश्रेष्ठ माना गया है. वैसे तो गरुड़ देव का जन्म सतयुग में हुआ था, लेकिन उनका ज़िक्र त्रेता युग और द्वापर युग में भी हुआ है.
पौराणिक कथा के अनुसार कश्यप ऋषि की दो पत्नियां कद्रू और विनता थीं. ऋषि से वरदान स्वरूप कद्रू को अंडों से सर्प पुत्र पहले प्राप्त हुए. इसके बाद दोनों में शर्त लग गई कि जिसका पुत्र ज्यादा बलवान होगा, वो जीतेगा और हारने वाले को उसकी दासता स्वीकार करनी पड़ेगी. इधर उत्सुकतावश विनता ने एक अर्धविकसित अंडे को समय से पहले ही फोड़ दिया. इस अंडे से एक ऐसा बच्चा निकला जिसका ऊपर का हिस्सा तो इंसानों जैसा और नीचे का हिस्सा ठीक से विकसित नहीं था. इनका नाम अरुण था, जिन्होंने अपनी मां को धैर्य खोने के लिए दासी का जीवन बिताने का श्राप दे दिया. अरुण बाद में सूर्य के रथ के सारथी बने. वहीं थोड़े दिन बाद दूसरा अंडा फूटने पर उसमें से गरुड़ निकले. उन्होंने सब कुछ जानने के बाद अपनी मां को दासत्व से मुक्ति दिलाने की ठानी और उस काम को पूरा करने में वो सफल भी हुए.