व्यक्ति के जन्म के समय ग्रहों की स्थिति, नक्षत्र और राशि के आधार पर ही उसकी कुंडली का निर्धारण होता है. कुंडली के प्रथम भाव को लग्न और उसमें स्थित राशि का स्वामी लग्नेश कहलाता है. ज्योतिष में लग्न और लग्नेश की स्थिति को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है. इसको ध्यान में रखकर ही व्यक्ति के बारे में ज्योतिषीय गणनाएं की जाती हैं.
कुंडली का प्रथम भाव यानि लग्न इसलिए भी अहम है क्योंकि ये हमारी शारीरिक संरचना, मस्तिष्क, स्वास्थ्य, रोग प्रतिरोधक क्षमता, स्वभाव, आयु, सम्मान, प्रतिष्ठा आदि का कारक माना गया है. लग्न और लग्नेश की स्थिति मजबूत होने पर व्यक्ति की कुंडली काफी बली हो जाती है. इसके विपरीत लग्न और लग्नेश का कमजोर होना व्यक्ति के जीवन में संघर्ष को बढ़ा देता है. लग्न का स्वामी अगर क्रूर ग्रह भी है तो भी वो अच्छा फल ही देता है. कुंडली में लग्न किसी व्यक्ति के स्वभाव को समझाने के लिए पर्याप्त है. लग्न व्यक्ति के विचारों की शक्ति को दर्शाता है. जिस कुंडली में लग्न में ही लग्नेश स्थित हो या लग्नेश की लग्न पर दृष्टि हो, ऐसे व्यक्ति अपने कार्य क्षेत्र में काफी प्रसिद्धि पाने वाले होते हैं.