शिव के 11वें रूद्रावतार हनुमान जी को उनके सभी अवतारों में श्रेष्ठ माना गया है. अपने इस अवतार में भगवान शंकर ने वानर का रूप धरकर प्रभु श्रीराम की भक्ति की और रावण का वध करने में उनकी सहायता की. हनुमान जी को विष्णु भगवान के अवतार मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम का अनन्य भक्त माना जाता है.
पौराणिक कथा के अनुसार, हनुमान जी की माता अंजनी की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर भोलेनाथ ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया और अपनी रौद्र शक्ति के अंश को पवन देव के रूप में यज्ञकुंड में अर्पित किया. यही शक्ति माता अंजनी के गर्भ में प्रविष्ट हुई और इस तरह महाबलशाली हनुमान जी का जन्म हुआ. शिव को ये अवतार इसलिए लेना पड़ा क्योंकि शिव जी को भगवान विष्णु से दास्य का वरदान मिला था, इसलिए उन्होंने त्रेता युग में राम जी की सेवा भी की और रावण का वध करने में उनकी सहायता भी की. इसके अलावा हनुमान जी को सीता जी से अमरता का वरदान भी मिला था.