गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र को एक दिव्य मंत्र के रूप में जाना जाता है. पौराणिक कथा के अनुसार क्षीरसागर में 10 हजार योजन ऊंचा एक त्रिकूट नाम का पर्वत था. उस पर्वत के चारों ओर जंगल में हाथी-हथिनियों का निवास स्थान था. उनमें से गजेंद्र नाम का हाथी सभी का राजा था. एक दिन वह उसी जंगल में अपने साथियों के साथ झुंड में घूम रहा था. धूप और गर्मी की वजह से उसके बाकी साथियों को प्यास लगी. गजेंद्र और उसके साथी पास के एक सरोवर में पानी पीने गए. प्यास बुझाने के बाद सभी ने पानी में स्नान करने की इच्छा जताई.
जब वे स्नान कर ही रहे थे तभी उस गजराज के पैर को एक मगरमच्छ ने पकड़ लिया. गजेंद्र ने पूरी कोशिश की लेकिन वो अपने पैर मगरमच्छ के जबड़े से नहीं छुड़ा पाया. अपनी मृत्यु को निकट आता देख गजेंद्र हाथी ने प्रभु श्री हरि को याद करते हुए उनकी स्तुति की, जिसे सुनकर भगवान विष्णु ने स्वयं आकर उसके प्राणों की रक्षा की. ऐसा कहा जाता है कि इस स्तोत्र के विधिवत पाठ से निश्चित रूप से जीवन में सुधार आएगा और कष्टों से मुक्ति मिलेगी.