भगवान शंकर के प्रमुख अवतारों में एक प्रमुख अवतार अश्वत्थामा का भी है. महाभारत काल में कौरवों और पांडवों के गुरू द्रोणाचार्य ने शिव जी को पुत्र के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी. अश्वत्थामा शिव, यम, काल और क्रोध के अंशावतार थे.
पौराणिक कथा के अनुसार, गुरू द्रोणाचार्य की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी ने अपने अंश से द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा के रूप में अवतार लिया. जन्म के समय अश्वत्थामा ने अश्व की तरह आवाज की, तभी एक आकाशवाणी हुई कि ये बच्चा अश्वत्थामा के नाम से जाना जाएगा. जन्म के समय से ही अश्वत्थामा के सिर पर एक मणि थी. महाभारत में अश्वत्थामा को काफी बलशाली माना गया है. अश्वत्थामा को पूरे महाभारत के दौरान कोई हरा नहीं पाया था. मान्यता है कि अश्वत्थामा अमर हैं और आज भी इस धरती पर गंगा किनारे वास करते हैं.