चातुर्मास की शुरुआत 10 जुलाई से हो गई है और भगवान भोलेनाथ का प्रिय श्रावण मास 14 जुलाई से शुरू हो रहा है. चातुर्मास में भगवान विष्णु के योगनिद्रा में चले जाने के कारण सृष्टि की बागडोर भगवान शिव के हाथों में ही रहती है. सावन के महीने में त्रिदेवों की सभी शक्तियां भगवान भोलेनाथ के पास ही होती हैं.
सावन के महीने को श्रावण मास इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस महीने पूर्णिमा को चंद्रमा श्रवण नक्षत्र में होता है. ज्योतिष की बात करें तो इस नक्षत्र के स्वामी गुरू बृहस्पति हैं. सीधे शब्दों में कहें तो श्रावण मास में भगवान को सुनना चाहिए ताकि हमारे मन से विकार दूर हो. कहते हैं भगवान शिव सावन के महीने में ही अपनी ससुराल गए थे, जहां उनका जलाभिषेक हुआ था. इसलिए भी सावन में रूद्राभिषेक का विशेष महत्व है. रूद्राभिषेक से भगवान भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों को रोगमुक्त, विवाह, संतान प्राप्ति और विद्या प्राप्ति का आशीर्वाद प्रदान करते हैं. श्रावण मास में शिव की आराधना से सभी तरह के कष्टों से छुटकारा मिलता है.