किसी ना किसी वजह से पितरों के कारण वंशजों को होने वाला कष्ट ही पितृ दोष कहलाता है. जो व्यक्ति अपने जीवन काल में पिता पक्ष के लोगों अथवा माता पक्ष के लोगों को दुख पहुंचाता है या उनका तिरस्कार करता है, उसे पितृ दोष का सामना करना पड़ता है. पूर्वजों का अपमान करने से पितृ दोष की स्थिति बनती है, जिसका सामना व्यक्ति के बच्चों को भी करना पड़ता है. पितृ दोष की वजह से व्यक्ति के जीवन में हमेशा संघर्ष की स्थिति बनी रहती है और उसे मानसिक तनाव घेरे रहता है. हर काम में रुकावट आना, गृहकलह रहना, संतान में बाधा, विवाह में बाधा, मांगलिक कार्यों में अड़चन, आकस्मिक नुकसान, संतान का पढ़ाई में दिल ना लगना और घर में कोई ना कोई परेशानी हमेशा बनी रहना पितृ दोष का प्रमुख कारण है.
किसी जन्म कुंडली में अगर सूर्य पर शनि या राहु-केतु का प्रभाव हो तो उस व्यक्ति पर पितृ ऋण की स्थिति मानी जाती है. इसके अलावा व्यक्ति के अपने कर्म भी पितृ दोष की स्थिति पैदा कर सकते हैं. पितृ दोष 7 पीढ़ियों तक चलता रहता है.