सावन का महीना अच्छी बारिश के लिए जाना जाता है. ऐसा कहा जाता है कि सावन के महीने में ही समुद्र मंथन के समय निकले विष को भगवान भोलेशंकर के पीने के बाद उनके गर्म शरीर को ठंडा करने के लिए ज्यादा बारिश हुई थी. शास्त्रों के अनुसार शिव के तीनों नेत्रों में से सूर्य दाएं नेत्र में, चंद्रमा बाएं नेत्र में और अग्नि मध्य नेत्र में हैं. सूर्य गर्म होने के कारण ऊष्मा देता है जबकि चंद्रमा ठंडा होने की वजह से शीतलता प्रदान करता है. सूर्य के कर्क राशि में प्रवेश करने के कारण काफी बारिश होती है.
पौराणिक कथा के अनुसार जब देवी सती निमंत्रण ना मिलने के कारण बिना बुलाए अपने पिता राजा दक्ष के यज्ञ आयोजन में गईं तो सभी ने उनका अपमान किया. देवी सती खुद के अपमान को तो सह लीं लेकिन जब पिता दक्ष ने उनके पति यानि शिव जी का अपमान किया तो वो सह नहीं सकीं और उन्होंने यज्ञ में अपनी आहुति दे दी. इसके बाद देवी सती ने पार्वती के रूप में जन्म लेकर शिवजी को पति रूप में पाने के लिए सावन सोमवार का व्रत किया. इसी व्रत के प्रभाव के चलते उन्हें शिव जी प्राप्त हुए. इसलिए सावन के महीने में शिव जी की सच्चे मन से पूजा-अर्चना करने पर भोलेनाथ जल्दी प्रसन्न होते हैं और कन्याओं को अच्छा वर प्रदान करते है.