हमारा शरीर ऊर्जा का अपार भंडार है. ये ऊर्जा शरीर के विभिन्न हिस्सों में केंद्रित रहती है. जरूरत होती है तो इस ऊर्जा को पहचानने की और उसे जाग्रत करने की. इसी ऊर्जा को कुंडलिनी शक्ति कहते हैं. कुंडलिनी शब्द कुंडल से बना है, जिसका मतलब होता है घुमावदार. मानव शरीर में 7 चक्र, 72 हजार नाड़ियां और 10 प्रकार की प्राण वायु होती है. मानव शरीर में सुषुम्ना नाड़ी पर 7 कुंडलिनी चक्र होते हैं. इन चक्रों पर ध्यान केंद्रित करने से हमें अपार ऊर्जा का अनुभव होता है.
लोगों में कुंडलिनी शक्ति मूलाधार चक्र में सांप की तरह सोई हुई रहती है. ध्यान के जरिए इसे जाग्रत किया जाता है. मूलाधार चक्र शरीर में सबसे नीचे रीढ़ की हड्डी में गुदा द्वार के पास होता है. यहीं से ध्यान सबसे पहले केंद्रित किया जाता है. इसके बाद कुंडलिनी जाग्रत होकर स्वाधिष्ठान चक्र पर पहुंचती है. ये चक्र जननेंद्रियों के पास मौजूद होता है. तीसरा चरण मणिपूर चक्र में पूरा होता है. ये चक्र नाभि के पास होता है. चौथा चक्र ह्रदय के पास होता है जिसे अनाहत चक्र कहते हैं. पांचवां चक्र गर्दन के पास स्थित होता है जो विशुद्ध चक्र कहलाता है. इसके बाद छठा चक्र ज्ञान चक्र होता है जो दोनों आंखों के बीच में होता है. सांतवां चक्र सहस्रार चक्र होता है. कुण्डलिनी योग में ये चक्र ही समाधि दिलाता है. कुंडलिनी के आखिर चक्र के जाग्रत होने से व्यक्ति की सांसारिक चेतना चली जाती है और उसे परमात्मा की प्राप्ति होती है.